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Exposed the lumpy skin disease

  सावधान! सावधान! लंपि बीमारी कॉरोना की तरह एक सुनियोजित षड्यंत्र है। इसे रोकना है तो गौमाता को वैक्सीन से दूरी बनाए और सरकार की गाइडलाइन की पालना करने की जगह स्वदेशी और आयुर्वेदिक इलाज शुरू कीजिए। बीमारी होने से पहले ही रोग प्रतिरोधकता क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं व खाने की चीजे दे। ध्यान रखे की अब हमे सिर्फ गौमाता अर्थात स्वदेशी नस्ल जैसे लाल सिंधी,साहीवाल,गिर,हरियाणा, थारपारकर,कंकरेज, कंगायम,अमृतमहल,हल्लीकर आदि। इन्हे ही हमे अपने घर में रखना है और इन्ही की हमे सेवा करनी है, प्रजनन भी केवल स्वदेशी नस्लों के बीच कराइए। जगह जगह पर क्रॉस ब्रीडिंग और विदेशी नस्लों के बैनर लगे हुए है, अब वक्त है इन जैसे राष्ट्र द्रोही कृत्यों को आग लगाने का। गौमाता के बिना हिंदू राष्ट्र कभी संभव नही है,ये लोग संयुक्त राष्ट्र संघ के एजेंडा 2030 के अंतर्गत काम करते है और उसे मोदी जी अपने कई भाषणों में खुले में बोल चुके है। एजेंडा 2030 के अनुसार 1.इस विश्व में जनसंख्या कम करनी है,उसके लिए ये corona लाए,  2.विश्व में एक ही धर्म हो, इस बात को भी मोदीजी ट्वीट कर चुके है, वह एक धर्म सनातन होगा यह भूल है उनक...
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वेद और विज्ञान के उद्देश्य

इस छोटे से जीवन में बहुत कुछ करना है तो हमें कुछ उद्देश्य स्थापित करने पड़ते हैं इसी प्रकार हमने संगठन के लिए कुछ हमारे जीवन के उद्देश्य है जिन्हें हम पूरा करने के लिए निरंतर लगे हुए हैं, वेद और विज्ञान हमारे जीवन का मूल मंत्र है हम भारत को अखंड व भव्य बनाना चाहते हैं, इसी क्रम में हमने एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी अपने ऊपर लिया है जो है वैदिक साहित्य का संरक्षण व प्रचार प्रसार। अतः हमें भारत की सभी समस्याओं का हल वैदिक साहित्य में नजर आता है वह भारत को भव्य बनाने के लिए जिन जिन जरूरतों की व भारत जिन जिन समस्याओं से जूझ रहा है उनको दूर करने की भी हम कोशिश करेंगे। वेद और विज्ञान के निम्न उद्देश्य है - 🚩*वेद और विज्ञान की प्रतिज्ञाएं*🚩 ✓_1. हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना और उसके अस्तित्व व शुद्धि की रक्षा करना_ ✓_2. गो विज्ञान अर्थात चिकित्सा,कृषि, विज्ञान आदि का प्रचार प्रसार करना, मातृत्व की भावना जगाना व शुद्ध देसी गाय की नस्लों का संरक्षण करना_ ✓_3. क्रांतिकारियों के जीवन के किस्सों और उनकी जीवनी यों का प्रचार प्रसार।_ ✓_4. भारत की सभी समस्याओं पर नजर बनाए रखना व उनका समाधान ढूंढना_ ✓_5. पर...

वनवासी हिन्दू है या नहीं? हिंदुओ ने उनके लिए क्या किया?

  वनवासी हिन्दू है या नहीं? आदिवासी महिलाओं की पुन: घर वापसी Tribals (वनवासी) के गांवो में विश्व हिन्दू परिषद(11,000<) व RSS जैसी संस्थाओं के हजारों विद्यालय दशकों से चल रहे है बिना स्वार्थ भाव। फिर आज वो आगे आकर कहते है कि कम हिन्दू नहीं। हम बिरसा मुंडा(पहले ईसाई मिशनरी के प्रभाव से ईसाई बने लेकिन गुरु ज्ञान प्राप्त कर सनातन धर्म अपनाया) की संतान नहीं? हम रामायण में उल्लेखित वो जनजातियां नहीं, हम महादेव के भक्त नहीं, हम भगवान वाल्मीकि (आज की वाल्मीकि जाति क्षत्रिय जाति है) की संताने नहीं, हम निषादराज के वंशज नहीं, नहीं नहीं ये भी नहीं पता कि आदिवासी तो सभी है लेकिन ट्राइबल वनवासी है। सरकार ने इन्हे उठाया लेकिन ये कहते है कि हमें तो फिर से ट्राइबल की श्रेणी दे, अरे आप जंगल में रहते ही नहीं तो कैसे वनवासी? यह सनातन बहुत प्राचीन है इसमें सभी आते है, सभी संस्कृतियों में इसकी जड़ें है। लेकिन ऐसा मानना सभी वनवासियों का नहीं है, छत्तीसगढ़ व कई राज्यो के वनवासी सनातनी है। मेरा आपसे यह सवाल है कि आप रिलिजन क्यों अपनाते है? जीवन पद्धति के लिए? जिससे आप एक वनवासी से सामाजिक बने तो हिन्दू...

रामायण भाग लेख संख्या -१

*आपसे विनती है, दिन का थोड़ा सा समय रामायण पाठ को देंवें* रामायण भाग लेख संख्या - 1 रामायण महाकाव्य की शुरुवात कैसे होती है, इसकी कल्पना आप हॉलीवुड फिल्मों से ,एलियन , दूसरे ग्रहों के लोगो की स्टोरी से कर सकते है ... पहली बात तो यह है, रामायण महाकाव्य को लेकर बहुत ही अधिक भ्रांतियां समाज मे फैली हुई है .... उसका निराकरण करना जरूरी है .... रामायण के आरम्भ की ही बात लीजिए । कई लोग समझते हैं कि बाल्मीकि जी ने रामायण पहले लिखी और जैसा उन्होंने लिखा ठीक वैसी ही रामायण की घटनाएँ हुई । यदि यह सही होता तो बाल्मीकि एक प्रगाढ़ ज्योतिषी के नाम से प्रख्यात होते और शायद उनका फलज्योतिष का भी कोई अलौकिक ग्रन्थ होता जिससे वह पाठकों को ग्रहगणित की वह अनोखी कुंजी बतलाते जिससे आगामी युगों के पूरे इतिहास के इतिहास बारीकी से पहले ही आँके जा सकते हैं ।  सच तो यह है कि रामायण की घटनाएं बहुत पुरानी हो जाने पर ही बाल्मीकि जी ने उनका संशोधन कर उसका इतिहास . लिखा । इस सम्बन्ध में नारद जी से उनका संवाद हुआ वह देखें ।  वाल्मीकि जी नारद जी से पूछते है :-  ॐ तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम् ।...

धनुर्वेद का यह श्लोक कई राज खोलता है..

क्या धनुर्विद्या सीखने का अधिकार सिर्फ क्षत्रियों को है? हथियार उठाने की इजाजत किस किस वर्ण को है? शुद्र की स्थिति क्या? धनुर्वेद इन सब के बारे में क्या कहता है? धनुर्वेद श्लोक ३   In respect of the right on Dhanurveda, he said that the archery teacher should always be a brahmin. But the other two castes have equal right to use it in a battlefield. Also the Sudras have the right to learn archery for hunting purposes.//३// हिंदी में धनुर्वेद पर अधिकार के संबंध में उन्होंने कहा कि तीरंदाजी शिक्षक को हमेशा ब्राह्मण होना चाहिए।  लेकिन अन्य दो जातियों को युद्ध के मैदान में इसका इस्तेमाल करने का समान अधिकार है।  साथ ही शूद्रों को शिकार के उद्देश्य से तीरंदाजी सीखने का अधिकार है।//3// यह श्लोक धनुर्वेद में लिखा मिलता है इसी से साफ स्पष्ट हो जाता है कि शुद्र और दलित अलग अलग चीजे है व सभी को शस्त्र अस्त्र का ज्ञान होना चाहिए। धनुर्वेद का यह श्लोक इसलिए भी थोड़ा जरूरी है क्योंकि यह दिखाता है कि युद्ध में दो वर्णों को लड़ने का अधिकार है, इससे आप समझ सकते हो कि पहले जाति प्रथा नहीं थ...

"जननी जन्म भुमिश्च स्वर्गाऽपि गरियसी" श्लोक किस ग्रंथ में मिलता है? इसका अर्थ क्या है?

  जननी जन्म भुमिश्च स्वर्गाऽपि गरियसी   यह श्लोक वाल्मीकि रामायण से लिया गया है। आपका यह जानना भी जरूरी है कि यह श्लोक नेपाल का राष्ट्र वाक्य है। यह श्लोक वाल्मीकि रामायण में दो बार आया है। भारद्वाज, राम को सम्बोधित करते हुए कहते हैं- मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव। जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥ हिन्दी अनुवाद : "मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।" दूसरा रूप : इसमें राम, लक्ष्मण से कहते हैं- अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥ अनुवाद : " लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं। इसलिए दोस्तो हमारा धर्म हमें सीखाता है कि देश सबकुछ है,इसके लिए प्राण देने पर भी संकोच भी करना चाहिए। भारत माता की जय जय हिन्द

क्रांतिकारी आजाद पुस्तक विवरण व डाउनलोड पीडीएफ

 " क्रांतिकारी आजाद" यह उनकी कथात्मक जीवनी है यानी उनके दोस्तो, साथियों, गांव वालो के बताए व लिखित लेख के अनुसार लिखी गई है। इसके लेखक शंकर सुल्तानपुरी है। यह किताब दिल को छूं लेने वाली है,इससे आपको देशभक्त आजाद की आजादी की लड़ाई के अदम्य साहस का पता चलेगा, किताब के कुछ अंश में आपको बताता हूं जब आजाद बचपन में घर छोड़कर बनारस चले गए थे और संस्कृत की पढ़ाई करने के लिए दाखिला लिया, एक दिन कॉलेज के कुछ बच्चो ने एक जुलूस निकाला जिसका नेतृत्व आजाद ने किया। और वो शेर की तरह दहाड़ते रहे जिसमे नारे थे, इंकलाब जिंदाबाद, अंग्रेजो भारत छोड़ो, भारत माता की जय, महात्मा गांधी जिंदाबाद..........। फिर इस बात की भनक जब अंग्रेजों को लग गई तब वह भीड़ पर यानी बच्चों पर लाठियां बरसाने लगी लेकिन बाकी बच्चे तो डर के मारे भाग गए लेकिन आजाद वहीं डटे रहे और शेर की तरह दहाड़ते रहे फिर उन्हें पुलिस पकड़ कर ले गई वह अदालत में पेश किया गया क्योंकि उनकी उम्र कम थी वे नाबालिग थे अतः उन्हें जेल में नहीं डाला जा सकता था इसलिए उन्हें कोड़े मारने की सजा सुनाई गई थी और जब पुलिस वाले उनके हाथ बांधने लगे तो आजाद ने...