जननी जन्म भुमिश्च स्वर्गाऽपि गरियसी
यह श्लोक वाल्मीकि रामायण से लिया गया है। आपका यह जानना भी जरूरी है कि यह श्लोक नेपाल का राष्ट्र वाक्य है।
यह श्लोक वाल्मीकि रामायण में दो बार आया है।
भारद्वाज, राम को सम्बोधित करते हुए कहते हैं-
मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव। जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
हिन्दी अनुवाद : "मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।"
दूसरा रूप : इसमें राम, लक्ष्मण से कहते हैं-
अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
अनुवाद : " लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।
इसलिए दोस्तो हमारा धर्म हमें सीखाता है कि देश सबकुछ है,इसके लिए प्राण देने पर भी संकोच भी करना चाहिए।
भारत माता की जय
जय हिन्द

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