- क्या धनुर्विद्या सीखने का अधिकार सिर्फ क्षत्रियों को है?
- हथियार उठाने की इजाजत किस किस वर्ण को है?
- शुद्र की स्थिति क्या?
- धनुर्वेद इन सब के बारे में क्या कहता है?
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| धनुर्वेद श्लोक ३ |
In respect of the right on Dhanurveda, he said that the archery teacher should always be a brahmin. But the other two castes have equal right to use it in a battlefield. Also the Sudras have the right to learn archery for hunting purposes.//३//
हिंदी में
धनुर्वेद पर अधिकार के संबंध में उन्होंने कहा कि तीरंदाजी शिक्षक को हमेशा ब्राह्मण होना चाहिए। लेकिन अन्य दो जातियों को युद्ध के मैदान में इसका इस्तेमाल करने का समान अधिकार है। साथ ही शूद्रों को शिकार के उद्देश्य से तीरंदाजी सीखने का अधिकार है।//3//
यह श्लोक धनुर्वेद में लिखा मिलता है इसी से साफ स्पष्ट हो जाता है कि शुद्र और दलित अलग अलग चीजे है व सभी को शस्त्र अस्त्र का ज्ञान होना चाहिए।
धनुर्वेद का यह श्लोक इसलिए भी थोड़ा जरूरी है क्योंकि यह दिखाता है कि युद्ध में दो वर्णों को लड़ने का अधिकार है, इससे आप समझ सकते हो कि पहले जाति प्रथा नहीं थी क्योंकि बाद में तो कई ब्राम्हण राजा भी हुए। ब्राह्मण यानी ऋषि,मुनि जैसे। मंदिरों में रहने वाले तो अब बने है। ये ब्राह्मण कुछ ही थे, और अन्य दो वर्ण है क्षत्रिय व वैश्य, अत: इस पर हमें यह सोचना चाहिए कि यदि राजा क्षत्रिय होगा तो क्या पूरी सेना वैश्य है? नहीं इसका मतलब यह की वैश्य वर्ण भी समय पड़ने पर युद्ध कर सकता है। लेकिन यदि हम सिर्फ व्यापारियों को वैश्य माने फिर तो सेना तुरंत ही हार जाएगी। अत: यहां पर यह सिद्ध होता है कि वैश्य वर्ण में सभी किसान,मजदूर व अन्य लोग भी आते है व सैनिक क्षत्रिय होता है। क्या आपको लगता है कि समाज का कोई अंग अभी भी बाकी है? नहीं जी, पहले तो ज्यादातर लोग किसान ही होते थे और राजा के दरबार में तो किसी भी वर्ण का व्यक्ति हो सकता है, फिर ये शुद्र कौन? जिन्हे शिकार के लिए धनुर्विद्या आनी चाहिए? यानी शुद्र शिकारी लोग थे व हो सकता है कि ये जंगलों में रहने वाले और पिछड़े लोग हो?
लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि शुद्र को भी विशेष अधिकार दिए गए है।
और ध्यान देने वाली एक और बात की संस्कृत श्लोक में वर्ण शब्द आया है जबकि अंग्रेजी में उसे caste कहा है और caste शब्द जाति को प्रदर्शित करता है तो मै क्यों ना मानू की यह कैस्ट सिस्टम यानी जाति प्रथा अंग्रेजो ने शुरू की? हालांकि इस बात के भी बहुत से सबूत है कि जाति प्रथा कम थी लेकिन सैकड़ों सालो से थी लेकिन भेदभाव अंग्रेजो ने ही शुरू किया यह इस चीज का प्रमाण हैं।
निष्कर्ष यही है कि धनुर्विद्या धर्म की रक्षा व अधर्म के नाश के लिए सभी को आनी चाहिए व सभी को अधिकार है।
धन्यवाद

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