हिन्दू मुस्लिम वाद
अक्सर देखा जाता है की ज्यादातर हिंदू मुसलमानों के ग्रंथों की बुराइयां करते हैं व मुसलमान हिंदुओं की आपसी फूट यानी जातियों की बात करते हैं।
लेकिन इस आपसी झगड़े का मूल कौन है किसने यह झगड़ा प्रारंभ करवाया? आप जानते है की जब मुग़ल थे तब भी यह झगड़ा नहीं था क्योंकि सब जगह हिंदू ही हिंदू थे, लेकिन कुछ लोगों ने डर के कारण धर्म तो बदल लिया लेकिन संस्कृति उनकी भारतीय ही रही। आप ढूंढोगे तो आपको मिलेगा की पूरे मेवात इलाके में आज भी सारी हिंदुओं के प्रथा निभाई जाती है मुसलमानों के द्वारा। जैसे घोड़ी पर चढ़ना, हल्दी रस्म, मेहंदी, मकर संक्रांति व नाम भी।
यह झगड़ा शुरू करवाने के दो मुख्य वजह हैं एक कांग्रेस जिसने एक देश एक कानून बनाने की जगह मुस्लिम तुष्टीकरण किया और दूसरा जमात, इन्होंने इन लोगों को धर्म की शिक्षा तो दी लेकिन उनकी संस्कृति को बदल दिया यानी उन्हें अरब की संस्कृति में ढालने लगे, नाम परिवर्तित करवाएं, आज भी आप नाम देख लेना मिल जाएगा राम खान, श्यामलाल। और इनकी संस्कृति को भी बदलने कि कोशिश की, लेकिन यहां तक झगड़ा शुरु नहीं हुआ था, झगड़े का मूल कारण है की एक मुस्लिम कभी दूसरे मुस्लिम की बुराई नहीं कर सकता बल्कि यह लोग पाकिस्तान को भी बाहर से बहुत ज्यादा अहमियत देने लगे, मेरा उनसे सवाल कि तुम्हें यहां पर पूरे अधिकार दिए गए तुम्हारे साथ कुछ बुरा नहीं किया गया फिर भी तुम यहां की बुराई करते हो या नहीं तुम्हारा पूरा मन पाकिस्तान जाने को था तो फिर तुम यहां रहे ही क्यों? यहां रहने का मुख्य कारण था इस देश को दारुल ए इस्लाम बनाना और शरिया कानून लागू करवाना।
और जब इस बात को हिंदू समझने लगे व मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध करने लगे तभी से यह झगड़ा शुरू हुआ है क्योंकि पहले यह कार्य गुप्त रूप में होता था और अब सेक्यूलर की आड़ में, और आप यह विश्वास कर सकते हैं कि क्या मौत सर पर है फिर भी आदमी किसी नेता या अन्य किसी व्यक्ति की बात मानेगा? असंभव लगता है, अबुल कलाम आजाद जी जो इस देश के पहले शिक्षा मंत्री थे उन्होंने भी इस देश को दारुल इस्लाम बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, अपना पूरा जीवन बस इसी काम में लगा दिया और उन्होंने अपने धर्म का पालन किया व इसी कारण के लिए उन्होंने वह मुसलमान यहां पर होके और उनसे कहा कि तो अपनी जनसंख्या बढ़ाओ, हालांकि अब युवा पीढ़ी शिक्षित हो रही है लेकिन हमारी बस या गलतफहमी है कि उनका यह उद्देश्य वह भूल गए हैं क्योंकि एक पढ़ा लिखा मुस्लिम युवक भी उस बेकार संस्कृति के बारे में एक शब्द भी नहीं सुन सकता, ना ही गलत को गलत कह सकता है, जबकि अपने धर्म की बुराई कर हिंदू अपने आपको पढ़ा-लिखा दिखाता है।
वह पढ़ा लिखा नवयुवक कभी पाकिस्तान की बुराई नहीं करेगा और नहीं कभी आतंकवादियों की। यह पढ़े-लिखे नवयुवक हमारे लिए और भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि यह राजनीतिक व शिक्षक भी हो सकता है। अभी कुछ दिनों पहले एक वकील पकड़ा गया था वह धर्मांतरण में सपोर्ट कर रहा था वह उनकी कानूनी कार्यवाही में मदद कर रहा था आप इसी से ही मेरी बात का अंदाजा लगा सकते हो कि मैं क्या कहना चाह रहा हूं। इसका हल क्या है? हल यही है कि हमें दिखाना होगा कि हम बहुसंख्यक है व आप का इतिहास इस देश का ही है, आपका हमारा dna एक है लेकिन इन चुपड़ी बातों से कोई समझने वाला नहीं है, हल यही है कि हमें जागना होगा।
कहा गया है की यदि आपको हिंसा से बचना है तो आपको हिंसक होना भी जरूरी है मतलब आपको अपनी आत्मरक्षा व युद्ध कला आनी चाहिए यही एक मात्र अहिंसा का हल है क्योंकि झगड़े तो कमजोरों से किए जाते हैं, इसका दूसरा दृश्य इस प्रकार है की धर्म की रक्षा, देश की रक्षा और अपनी संस्कृति की रक्षा यह तभी संभव है जब आप जागृत हो।
फिर कोई भी इस देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाने से तो बहुत दूर लेकिन अपनी संस्कृति ठोकने की भी कोई कोशिश नहीं करेगा।
यह मेरे खुद के विचार है और मैं चाहता हूं की यह बात दोनों पक्ष समझे की यदि मुस्लिम बन्ना होता तो जब तलवारे चल रही थी जब भी बन जाते इसलिए आपका यह प्रयास व्यर्थ है और अब हमने आज की स्थिति के बजाय इतिहास रखना चाहिए कि हम कौन हैं? हमारे बाप दादा कौन है? और हिंदुओं को भी सेकुलर की आड़ में अंधा नहीं हो जाना चाहिए।
"इस्लाम अरब के लिए है भारत के लिए नहीं"
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